मंगलवार, 12 मार्च 2013

दिल पर तेरा नाम बहुत है





दिल पर तेरा नाम बहुत है 
मुझ को ये इनाम बहुत है !

चूल्हा  ठंडा   जेबें    खाली 
आज हमे आराम बहुत है!

हाँ हाँ तुम यमदूत हो लेकिन 
अभी यहाँ पर काम बहुत है !

चाहूँ तो ख़ुम ख़ाली कर दूँ 
वैसे तो एक जाम बहुत है !

मेरी मय  ख्वारी  का  चर्चा 
इस बस्ती में आम बहुत है !

सच पूछो तो गावं का मुखिया 
बद कम  है  बदनाम  बहुत है !

गजल -वजल, कल वल कह लेना 
आज तो  घर   में   काम बहुत है !

(ख़ुम =घडा / शराब का घडा )

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल


दुनिया  के   बाज़ार    से    आओ    हम   भी    कुछ  सामान   खरीदें
सुनी सी आँखों की खातिर सपने और सामान  सपने अरमान खरीदें

खुद  गिर  कर   औरों   को  सम्भालें ,  नेकी   कर    दरिया   में  डालें
सागर    मथ    कर    ज़हर    निकालें,   सेवा    दें   अपमान    खरीदें

घुटने    सरकश   लहू   चाशनी  ,      दिल    दिमाग   काबू  से बाहर
मिले   तो   इस    बूढी    काया    की   खातिर   अब कुछ जान खरीदें

फ़रसूदा   ख़्वाबों    की    लाशें    अब    तो    सड़ने   गलने    लगी है
अब   तो   इनके   लिए   कफ़न   और   थोडा   सा   लोबान    खरीदें

धुंधली  धुंधली  प्रेम  डगर  है ,  दिल  में तड़प  कुछ कम है ,मगर है
तुम पे भरोसा ज़ादे सफ़र है,  और    अब       की   सामान     खरीदें
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सरकश =ज़ालिम ;लहू चाशनी =वैसे मुझे अभी  डाइबीटीज नहीं हुई है
                                                 बोर्डरलाइन केस हूँ
जादेसफर = सफर का सामान
फरसुदा   = पुराने
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अखतर किदवाई
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